
-मूसल गेर में नाचे सगरवंशी माली समाज के गेरिए
सादड़ी. कोरोना का असर कम होने पर दो साल बाद सगरवंशी (ओढ़ माली) समाज की ऐतिहासिक रियासतकालीन सांस्कृतिक दर्जा प्राप्त मूसल गेर (हामेळागेर, भैरव व लाडुबा गेर) गुरुवार को हर्षोल्लास से संपन्न हुई। गेर में सांस्कृतिक लोक संस्कृति का रंग ओर ग्रामीणों में जोरदार उत्साह दिखा। गेर का लुत्फ उठाने मारवाड़, गोडवाड़, मेवाड़ अंचल सहित विभिन्न प्रदेशों के सैकड़ो ग्रामीण सड़कों पर उमड़ पड़े। गेर के दौरान करीब घंटेभर गाछवाड़ा पुलिया से आखरिया चौक, बस स्टैंड मार्ग पर यातायात बंद रहा। नाईवाड़ा चौक मालिया बास स्थित आराध्य भैरव व आशापुरा मां मंदिर में पूजा अर्चना की गई। सैन समाज के प्रबुद्धजनों ने 20-25 सगरवंशी माली गेरियों को तेल मिला सिंदूर, मालीपन्ना व काला रंग लगाकर भैरव समरूप स्वांग में तैयार किया। गेरियों ने हाथों में मूसल लेकर ढोल, ताशे व मृदंग की थाप के संग मंदिर में नृत्य किया।
मूसल लगाकर नेग लिया
मंदिर से गेर नाईवाड़ा चौक, तलवटा, मैनबाजार, प्याऊ, गोखरों का बास, भूत पीपली, आखरिया चौक, गाछवाड़ा, पुलिया से रामधुन चौक बलिया ढाल होते प्रारंभ स्थल पहुंची। यहां सामाजिक बैठक हुई। गेरियों ने नगर परिक्रमा दौरान विभिन्न चौराहों पर नृत्य किया। गेरियों ने होली की मजाक में मूसल लगाकर नेग लिया।
इन्होंने किया सहयोग
सुरेशपुरी गोस्वामी, मांगीलाल सगरवंशी, जगदीश, चुन्नीलाल, ताराचंद, किशोर भाटी, बाबूलाल, पार्षद रमेश प्रजापत,संजय बोहरा, घीसाराम जाट, कन्हैयालाल सोनी, दिलीप सोनी, हस्तीमल वैष्णव, कमलेश गिरी, रमेश बोहरा नाडोल, विनोद सैन, गोविंन्द मीणा, शंकरलाल भाटी, गोविंदप्रसाद व्यास, मंगल बोहरा, श्याम सैन, भीमाराम चौधरी, गजाराम भादू, जवाहरलाल, दिनेश मीणा, भोमाराम राइका, राकेश मेवाड़ा, रमेश मोरवाल,जगदीश प्रजापति व थानाराम मीणा सहित प्रबुद्धजन व्यवस्थाओं में जुटे रहे।