सिरोहीrajasthansirohiराजस्थान

जान-माल के नुकसान के बावजूद बेखबर बन रहा प्रशासन

  • हादसों को न्योता दे रहे वाहनों के पीछे दौड़ते आवारा श्वान

मनोजसिंह@सिरोही. शहर आवारा कुत्तों की समस्या लाइलाज बन गई है। सच तो यह है कि आवारा कुत्ते आतंक का पर्याय बन चुके हैं और इनका आतंक लगातार बढ़ता ही जा रहा है। नतीजतन देर-सवेर घर से बाहर निकलने वाले लोग दहशतजदां बने रहते हैं। उधर, नगर परिषद प्रशासन इस गंभीर समस्या की सरासर अनदेखी कर रहा है। नतीजतन शहरवासियों की समस्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। शहर में नन्हे-मुन्ने, स्कूली छात्र, टूव्हीलर सवार व बुजुर्ग इन कुत्तों की हरकतों से खासे परेशान हैं। अभिभावकों को नन्हे-मुन्नों व स्कूल जाने वाले बच्चों का खास ध्यान रखना पड़ता है। अधिकतर गली-मोहल्लों में कई कुत्ते अचानक बच्चों को पीछे से लपक लेते हैं। लिहाजा बच्चे घर से बाहर खेलने जाने से डरते हैं। कई बार डॉग बाइट का शिकार होने वालों को इंजेक्शन दिलाने की जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। दुपहिया वाहन सवारों की दिक्कत यह है कि वे जैसे ही किसी गली-मोहल्ले से गुजरते हैं, कुत्ते भौंकते हुए वाहन के साथ-साथ दौडऩे लग जाते हैं। ऐसी स्थिति में चालकों के घबरा जाने से वाहन का संतुलन बिगडऩे और किसी दीवार या चबूतरे या बिजली के पोल से टकराने का खतरा बना रहता है। हादसों में कई लोग जख्मी हो चुके हैं। दो-तीन युवा तो जान भी गंवा चुके हैं। कलावंत वास में पिछले सालों एक बाइक सवार युवक की हुई दर्दनाक मौत को लोग अभी तक नहीं भुला पाए है।#sirohi-Stray dogs running behind vehicles inviting accidents – request for sterilization

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नगर परिषद में नहीं कोई सुनवाई
लोगों ने बताया कि समस्या को लेकर नगर परिषद कार्यालय में सभापति महेन्द्रकुमार मेवाड़ा, आयुक्त व पार्षदों को कई बार शिकायत की गई। पर, न तो किसी ने सुनवाई की और ना ही शहरवासियों को इस समस्या से निजात दिलाने का भरोसा दिलाया। शिकायत करने वाले ठगे से रह गए। लगता है सभापति महेन्द्रकुमार मेवाड़ा और पार्षदों को इस समस्या से कोई सरोकार नहीं है। वे तो अपना कार्यकाल पूरा करने में लगे हुए हैं।

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रात के समय विकट हालात
कई गली-मोहल्लों में तो रात के समय इन कुत्तों की वजह से घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। शहर में रात के समय किसी भी रास्ते से गुजरने पर दुपहिया वाहन चालकों को अक्सर कुत्तों का सामना करना पड़ता है। तेज रफ्तार से चलते दुपहिया वाहन के साथ-साथ या पीछे दौड़ते कुत्ते दुर्घटना का सबब बन जाते हैं। शहर का शायद ही ऐसा कोई इलाका हो, जहां कुत्तों की समस्या नहीं हो।

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स्कूटर-बाइक की सीटों को नुकसान
शहरवासियों के मुताबिक कई गली-मोहल्लों में रात के समय अपने घरों के आगे खुले में पार्क रहने वाले स्कूटर-बाइक की सीटों को ये कुत्ते नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते। एक स्कूटर चालक ने बताया कि उसके स्कूटर की पूरी सीट ही कुत्तों ने चबाकर तोड़ डाली। नई सीट डलवाने पर हजार-पंद्रह सौ का खर्च सामान्य है। सीट का कवर तो फिर भी सस्ते में मिल जाता है पर सीट डलवाना महंगा पड़ता है।

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कुत्ता काटने पर इलाज की प्रक्रिया लम्बी
खास तौर पर बच्चों व दुपहिया वाहन चालकों को ये कुत्ते अपना शिकार बनाते है। काटने या मामूली दांत चुभाने से भी उस व्यक्ति को इंजेक्शन लगवाने की लम्बी-चौड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। कई बार तो डॉग बाइटिंग पर सरकारी अस्पताल में इंजेक्शन मयस्सर नहीं होने पर अभिभावक बाजार से महंगे इंजेक्शन खरीदने को विवश हो जाते हैं।

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कुत्तों की नसबंदी की गुहार
अभी तीन दिन पहले ही गौ संकल्प टीम के सदस्यों ने जिला कलक्टर को ज्ञापन देकर शहरवासियों को कुत्तों की समस्या से निजात दिलाने के लिए आवारा मेल डॉग की नसबंदी करने का अभियान चलाने की मंशा जाहिर की। टीम सदस्यों ने कलक्टर को बताया कि नगर परिषद प्रशासन की ओर से कुत्तों की नसबंदी नहीं करवाने से शहर में इनकी संख्या में जबरदस्त इजाफा हो गया है। डॉग बाइटिंग की घटनाएं भी बढ़ रही है। शहरवासियों की इस समस्या को दूर करने के लिए गौ सेवा संकल्प टीम के कार्यकर्ता पशु चिकित्सक डॉ.अरुण खत्री की देखरेख में कुत्तों की नसबंदी का अभियान चलाना चाहता है। कमोबेश हर गली-मोहल्ले में कम से कम दो-ढाई दर्जन कुत्ते है। सदस्यों ने बताया कि यदि जिला कलक्टर से स्वीकृति मिल गई तो नसबंदी का अभियान शीघ्र ही शुरू करवा दिया जाएगा।
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