
- कमरा नम्बर आठ में गए तीन बार, खड़े-खड़े ही गुजारा ज्यादातर समय
सिरोही. कांग्रेस प्रत्याशी वैभव गहलोत बुधवार को सिरोही आए और कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। यहां से वे पिण्डवाड़ा व आबूरोड के लिए रवाना हुए। हालांकि चुनावी माहौल होने से यह दौरा भागदौड़ भरा रहा, लेकिन देखा जाए तो वे असहज से नजर आए। कार्यकर्ताओं से मुलाकात करते समय और पत्रकारों से बातचीत करते समय भी उनकी असहजता साफ दिखी। कार्यकर्ताओं से मुलाकात से पहले वे सर्किट हाउस के कमरा नम्बर आठ में गए और कार्यक्रम खत्म होने के बाद बाहर निकलने से पहले मुख्यद्वार पर रूके और वापस लौटकर आठ नम्बर कमरे में गए। वहां से आकर फिर कार में बैठे।
खड़े-खड़े ही ज्यादा ठीक है
इससे पहले पत्रकारों ने भी आठ नम्बर कमरे में ही उनसे बातचीत की। उन्हें बैठने को कहा गया, लेकिन वे मुकर गए और बोले खड़े-खड़े ही ज्यादा ठीक है। बाद में पांच मिनट बातचीत कर सीधे ही बाहर निकल गए। कार्यकर्ताओं से भी डाइनिंग हॉल व खुले में अधिकतर समय खड़े-खड़े ही बातचीत की।
पत्रकार वार्ता में मिले इस तरह के जवाब
पत्रकारों से हुई बातचीत में क्षेत्र का पूरा फीडबैक शायद उनके पास नहीं था। यही कारण रहा कि सडक़ों के हाल खराब बताए और केंद्र से फंड नहीं आना बताया, जबकि यहां भारतमाला परियोजना के तहत कार्य हुए हैं। वैसे स्थानीय स्तर पर सडक़ों की स्थिति सुधारना राज्य का कार्य है, जो तीन माह पहले से उनके पिता अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के पास ही था। विधानसभा चुनाव से पहले जिलाध्यक्ष घोषित हो गए, लेकिन कार्यकारिणी नहीं बनी और लोकसभा चुनाव भी आ गए। इसके जवाब में वैभव गहलोत ने बताया कि संगठनस्तर पर आगे बात पहुंचाई जाएगी। साथ ही उनका कहना रहा कि क्षेत्र के दौरे में उनको अच्छा रेस्पांस मिला है।
इनको तीन बार के देवजी ही दिखे
उन्होंने कहा कि पिछले तीन चुनावों से पंद्रह सालों से भाजपा का सांसद यहां जीतते आ रहे हंै। इसे पंद्रह साल से भाजपा के कब्जे में बताया, जबकि यह सीट लगातार चार बार से भाजपा के पास है। तीन बार से देवजी पटेल एवं उनसे पहले भाजपा की श्रीमती सुशीला यहां से सांसद रही हैं।
आगमन पर स्वागत का कोई होर्डिंग तक नहीं दिखा
पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र होने के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी वैभव गहलोत के आगमन को लेकर कार्यकर्ताओं में अपेक्षित उल्लास नदारद क्यों था यह समझ से परे है। किसी के जन्मदिन या पर्व को लेकर बधाई संदेश देने के लिए भी इन दिनों होर्डिंग लगाए जाने की परम्परा सी बन गई है उस दौर में भी प्रत्याशी के आगमन पर कोई स्वागत या अभिनंदन का होर्डिंग तक नहीं दिखा। टिकट घोषित होने के बाद न तो आतिशबाजी हुई और न ढोल-ढमाके गूंजे। यहां तक कि उनके आगमन को लेकर कहीं होर्डिंग या बैनर तक नहीं लगे।
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