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भूजल के अत्यधिक दोहन से बढ़ रहा डार्क जोन, बचने के लिए विशेष प्रयास आवश्यक

  • सांसद देवजी पटेल ने संसद में प्रस्तावित किया डार्क जोन क्षेत्रों में विशेष पेयजल एवं सिंचाई विकास निधि विधेयक

नई दिल्ली. सांसद देवजी पटेल (MP DEVJI PATEL) ने भूजल के अत्यधिक दोहनल से बढ़ रहे डार्क जोन को लेकर चिंता जताई। साथ ही इससे बचाव के लिए विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता जताई। शुक्रवार को उन्होंने संसद सत्र के दौरान देश के डार्क जोन क्षेत्रों के लिए विशेष पेयजल एवं सिंचाई विकास निधि विधेयक, 2019 को प्रस्तावित किया।

उन्होंने प्रस्तावित विधेयक में बताया कि देश का एक तिहाई से अधिक भाग भू-गर्भ जल संकट की चपेट में हैं। देश के कुछ हिस्सों विशेषकर उत्तर-पश्चिम भारत में भूजल का स्तर हर साल चार सेंटीमीटर की दर से गिर रहा है। इन राज्यों में राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा व पंजाब के साथ पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई हिस्से शामिल हैं। देश के कुल 5723 ब्लॉकों में से 839 अत्यधिक भू-गर्भ जल के दोहन के कारण डार्क जोन में चले गए हैं। 226 की स्थिति क्रिटीकल और 550 सेमी क्रिटीकल में हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु गंभीर रूप से इस संकट का सामना कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और केरल भी इस समस्या से अछूते नहीं हैं।

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बताई राज्यवार स्थिति
सांसद ने बताया कि राज्यवार यदि देखे तो तमिलनाडु के 385 ब्लॉक में से 33 क्रिटीकल और 57 सेमी क्रिटिकल जोन में हैं। आंध्रप्रदेश में 219 ब्लॉक में 77 क्रिटीकल और 175 सेमी क्रिटीकल जोन में हैं। हरियाणा के 113 ब्लॉक में से 11 क्रिटीकल और पांच सेमी क्रिटीकल हैं। पंजाब के 137 ब्लॉक में पांच क्रिटीकल और चार सेमी क्रिटीकल जोन में हैं। राजस्थान में जमीन का पानी दोहन लायक नहीं बचा है। राजस्थान राज्य के 236 ब्लॉकों में से 164 ब्लॉक अत्यधिक दोहन और 34 चिंताजनक श्रेणी में आ चुके हैं। यहां वर्ष 1984 में 203 ब्लॉकों का भूमिगत जल पीने लायक था पर वर्ष 2015 में अप्रत्याशित रूप से सुरक्षित ब्लाकों की संख्या मात्र 30 रह गई है।

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इसलिए बढ़ रहा डार्क जोन का दायरा
उन्होंने बताया कि भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण ही देशभर में डार्क जोन का क्षेत्र बढता जा रहा है। इस भयावह परिस्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि वर्षा जल को अधिकारिक मात्रा में धरती में उतारा जाए। डार्कजोन एरिया में पेयजल और सिंचाई एक बहुत बडा संकट का रूप ले रही है। इस क्षेत्र में पेयजल और सिंचाई के लिए राज्य सरकार के पास पर्याप्त निधियां नहीं है। इसलिए डार्कजोन एरिया में बेहतर सिंचाई पेयजल वर्षा का जलसंचय, पौधरोपण, रेतीली भूमि पर वन विकास के लिए केन्द्र सरकार की ओर से एक निधि की स्थापना किए जाने की आवश्यकता है।

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यह है जालोर जिले की स्थिति
सांसद ने बताया कि जालोर जिले का कुल क्षेत्रफल 10640 वर्ग किलोमीटर है एवं सामान्य वार्षिक वर्षा 410.41 मिलीमीटर है। रेतीले क्षेत्रों में वार्षिक का लगभग 12 प्रतिशत एवं चट्टानी क्षेत्रों में 7 प्रतिशत जल ही भूमि में जाता है। इससे लगभग 403 मिलियन घनमीटर भूजल जमा होता है, लेकिन इसके विपरित 908 मिलियन घनमीटर भूजल का दोहन कर रहे हैं। जिले में अधिकांश पेयजल योजनाएं एवं सिंचाई कार्य भूजल पर आधारित है। सबसे अधिक पानी लगभग 95 प्रतिशत कृषि में, 5 प्रतिशत पेयजल में एवं अन्य उपयोग में खर्च होता है। जिले में वर्ष 1995 में भूजल दोहन 123 प्रतिशत था, जो वर्तमान में बढ़कर 225 प्रतिशत हो गया है। यानि कुल वार्षिक पुनर्भरण की तुलना में 33 मिलियन घनमीटर भूजल अधिक निकाला जा रहा है। 1984 में औसत 13 मीटर गहराई पर पानी उपलब्ध था, जो अब 30 मीटर से भी अधिक हो गया है। नलकूप एवं कुएं सूख गए हैं या सूख रहे हैं। इससे गांवों में सिंचाई के साथ पेयजल का भी संकट पैदा हो गया है। यहां के निवासी गत तीन दशकों से पानी की कमी के संकट से जूझ रहे हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश गांवों में टैंकरों से पेयजल की आपूर्ति की जाती है। गिरते भूजल स्तर की समस्या दिन प्रतिदिन बिगडृती जा रही है। यह क्षेत्र अतिदोहित श्रेणी में वर्गीकृत है।#Dark zone increasing due to excessive exploitation of groundwater, special efforts are necessary to avoid it

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