- साहित्यकार आईएएस टीकम अनजाना ने कहा, प्रताप की सांप्रदायिक एकता की आज महत्ती आवश्यकता
जयपुर. साहित्यकार आईएएस टीकमचंद बोहरा (IAS) ने अपने कविता संग्रह ‘रज भारत की चंदन-सी’ में महाराणा प्रताप के जीवन चरित को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी टीकमचंद बोहरा साहित्य क्षेत्र में टीकम अनजाना के नाम से विख्यात है।
महाराणा प्रताप जयंती के उपलक्ष्य में वे बताते हैं कि प्रताप की सांप्रदायिक एकता की आज महत्ती आवश्यकता है। मानव धर्म से बढ़कर अन्यथा कुछ श्रेष्ठ नहीं जानकार ही हकीमखां पठान ने मेवाड़ी सेना का नेतृत्व किया एवं आदिवासियों ने क्षत्रियों का साथ दिया। दुश्मन अकबर की सेना के सेनापति जयपुर के राजा मानसिंह के खिलाफ हल्दीघाटी का युद्ध एक जनयुद्ध रहा। रक्त तलाई स्थित सतियों का चबूतरा, झाला मानसिंह बड़ी सादड़ी एवं ग्वालियर नरेश राजशाह तंवर के पुत्रों सहित छतरियां व हकीमखां की मजार देश के स्वाभिमान की रक्षा में सर्व समाज की दी गई आहुतियों का प्रतीक है। पाठकों के लिए खास पेशकश:
*गौरव गाथा प्रताप की*
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की।
गौरव जिससे पाती है, धरती राजस्थान की।।
नौ मई पन्द्रह सौ चालीस को, जन्म प्रताप ने पाया था।
उदयसिंह का पुत्र प्रताप, रानी जयवन्ती का जाया था॥
सड़सठ के साल अकबर ने, चित्तौड़ पर की चढ़ाई थी।
प्रताप को ले उदयसिंह ने, शरण जंगल में पायी थी॥
साका कर चित्तौड़ में, दी आहूतियां प्राण की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
अठाइस फरवरी बहतर को, उदयसिंह स्वर्ग सिधारे थे।
तब गोगून्दा के महलों में, प्रताप सिंहासन पधारे थे॥
कुम्भलमेर और गौगून्दा में, महाराणा प्रताप का राज था।
अधीन अकबर के हुए नहीं, सो बादशाह बड़ा नाराज था॥
मेवाड़ पताका झुकी नहीं, हुई तौहीन मुगल निशान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
नवम्बर बहतर के साल में, जलाल खां दूत बनके आया था।
मेवाड़ मुगलों के अधीन हो, सन्देश अकबर का लाया था॥
अकबर के सन्धि प्रस्ताव को, महाराणा ने ठुकरा दिया।
कूटनीति कर प्रताप ने, जलाल को वापस भिजवा दिया॥
अकबर बादशाह के लिए, ये बात न थी सम्मान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
जून पन्द्रह सौ तेहतर में, दूत मानसिंह दूसरा आया था।
अकबर का सन्देश प्रताप को, नहीं तनिक भी भाया था॥
मानसिंह राणा प्रताप को, तनिक भी नहीं मना सका।
कुपित होकर चला गया, वो खाना तक नहीं खा सका॥
प्रताप अड़िग अविचल रहे,थी बात मेवाड़ी मान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
तेहतर के साल सितम्बर में, मुग़ल दूत आया भगवन्तदास।
मेवाड़ को अधीन लाने का , उसने खूब किया प्रयास॥
अकबर के अधीन हो गए, ईडर के राठौड़ नारायणदास।
मगर प्रताप को मना न सका, आमेर नरेश लौटा हताश॥
प्रताप ने नहीं सर झुकाया, थी बात स्वाभिमान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
दिसम्बर पन्द्रह सौ तेहतर में, टोडरमल लाया अकबर-सन्देशा।
महाराणा प्रताप को चेताया, सिर पर छाया युद्ध-अन्देशा॥
टोडरमल खाली हाथ गया, वो मना न सका प्रताप को।
अकबर ने तब लज्जित, महसूस किया अपने आप को॥
कुपित बादशाह हो गया, उसे लगी बात अपमान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
सैन्य-संगठन मजबूत किया, प्रताप का अटल इरादा था।
मान मेवाड़ी नहीं घटने दूंगा, किया उदयसिंह से वादा था॥
अकबर ने सेना भिजवाई, मानसिंह जिसका सेनापति।
युद्ध करने को आतुर था, इधर प्रताप मेवाड़पति॥
सैनिकों से अटी पड़ी थी, भूमि युद्ध-मैदान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
खमनोर के जंगलों में, हल्दी घाटी इक दर्रा था।
पहाड़ियों के बीच, रस्ता बहुत ही संकरा था॥
हल्दी घाटी के एक ओर, सेना प्रताप की खड़ी थी।
उधर अकबर की सेना, मेवाड़ी फ़ौज से बड़ी थी॥
महाराणा को क़ाबू करने, आयी थी सेना शैतान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
जून अठारह पन्द्रह सौ छिहतर, प्रताप ने छेड़ा संग्राम।
हरावल दस्ता टूट पड़ा, लेकर इकलिंग का नाम॥
मेवाड़ी फ़ौज के सेनापति, थे हकीम खां सूरी।
झाला मान की प्रताप से, नहीं थी तनिक भी दूरी॥
वेश प्रताप का धर झाला ने, लगा दी बाज़ी जान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
घायल घोड़े चेतक ने, प्रताप का साथ निभाया था।
रणभूमि से राणा को वो, सुरक्षित बचाकर लाया था॥
रूष्ट प्रताप से होकर, निकल पड़ा था भाई शक्ति।
मगर अश्व चेतक ने, निभायी गजब की स्वामिभक्ति॥
समाधि याद दिलाती है, चेतक के सम्मान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
महाराणा प्रताप की फौज, मुगल सेना पर टूट पड़ी।
मुगल सेना को मौत दिखी, तब हुई वो भाग खड़ी॥
मुग़ल सेना के मिहतर खां ने, भागती सेना को रोका था।
अकबर के आने की बात कही, हालांकि ये धोखा था॥
मेवाड़ी तलवारों की प्यास बुझी, अरि रक्त के पान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
पीठ दिखाकर मानसिंह, गया लौट के खाली हाथ।
अजमेर से रवाना हो, अकबर आया सेना के साथ॥
प्रताप को पकड़ने की आरजू, रही अकबर की अधूरी।
बख्शी शहबाज ने की चढ़ाई, प्रताप पर जीत थी जरूरी॥
कुम्भलमेर को कब्जा गयी, सेना शाहबाज खान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
सेना बढ़ाकर प्रताप ने, पहले जीत लिया दिवेर।
छापामार युद्ध करके, फिर क़ब्ज़ाया कुम्भलमेर॥
लूणा को कर पराजित, कब्जायी चावण्ड ठौड़।
राजधानी चावण्ड बनी, प्रताप रहे सदा बेजोड़॥
वागड़ को फिर जीतना, थी बात मेवाड़ी शान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
वीर प्रताप डरे नहीं, मुगलों की ललकारों से।
शत्रु के सर काट डाले, भालों और तलवारों से॥
गाथा गाती हल्दी घाटी, राणा पूंजा के बलिदान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
प्रताप के पराक्रम की, साक्षी हल्दी घाटी है।
तिलक करो इस रज से, ये बलिदानी माटी है॥
गौरव प्रताप का गाती है, माटी हिन्दुस्तान की।
गाथा आज सुनाता टीकम, वीर प्रताप महान की॥
–टीकम ‘अनजाना’