राधे-राधे के जयकारों से गुंजायमान रही गोशाला, श्रद्धालुओं में दिखा उल्लास
- संत कृपाराम ने कहा भगवत कथा बताती है विचार, वैराग्य, ज्ञान व हरि से मिलने का मार्ग
सिरोही. बाल गोपाल गोशाला में श्रीमद भगवत कथा आयोजन को लेकर श्रद्धालुओं में उल्लास बना हुआ है। कथा के दौरान राधे-राधे के जयकारे एवं नृत्यरत श्रद्धालुओं ने समां बांध दिया। शहर समेत आसपास के गांवों से भी श्रद्धालु कथा श्रवण के लिए पहुंच रहे हैं। महोत्सव के तहत मंगलार को संत कृपाराम (sant kriparam) महाराज ने गणेश वंदना, हनुमान चालीसा व मंत्रोच्चार के साथ श्रीमद भागवत कथा का आगाज किया। शुकदेव महाराज के जन्म व श्रीमदभगवत अमर कथा का वर्णन किया।
उन्होंने कहा कि भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं, ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मु_ी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव को यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का हमेशा कल्याण होता है। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो एवं जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो। इससे जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल सकती है। कहा कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान व हरि से मिलने का मार्ग बताती है। कथा के दौरान घनश्यामदास व जगदीश महाराज ने भजन प्रस्तुति दी।
इसलिए बारह वर्ष गर्भ में रहे
शुकदेव महाराज महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे, जो बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहे। इसके पीछे कारण बताया कि एक बार भगवान शिव, पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे। मां पार्वती को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई एवं उनकी जगह वहां बैठे शुकदेव महाराज ने हूंकारा देना शुरू किया। भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई तो वे कुपित हुए एवं शुकदेवजी पर अपना त्रिशूल छोड़ा। शुकदेव महाराज अपनी जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागे एवं भागते-भागते व्यासजी के आश्रम में आकर सूक्ष्मरूप में उनकी पत्नी के मुख में प्रवेश किया तथा उनके गर्भ में रह गए। ऐसा कहा जाता है कि ये बारह वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा तब ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाए। गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था।