
- आदिवासी क्षेत्र में प्रस्तावित खनन परियोजना निरस्ती की मांग
- ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भेजा
सिरोही. पिण्डवाड़ा क्षेत्र में प्रस्तावित खनन परियोजना को निरस्त करने की मांग करते हुए ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया। जिला मुख्यालय पर एकत्र हुए ग्रामीणों ने रोष जताया। कहा कि आदिवासी क्षेत्र को बचाए रखने की आवश्यकता है। खनन परियोजना से पहाडिय़ों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। इन ऐतिहासिक पहाडिय़ों को बचाए रखने के लिए खनन परियोजना को निरस्त किया जाना चाहिए। आक्रोशित ग्रामीणों ने जिला कलक्टर को राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। पंचायत समिति सदस्य बलवंत चौधरी (भारजा), रतनलाल गरासिया, राकेश देवासी, भरत राजपुरोहित, राजू जणवा, राजू चौधरी, रमेशकुमार घांची, खेताराम गमेती, मेवाबाई, गजाराम घांची, पदमाराम घांची, राजू घांची, उड़ता सूरज संगठन से भरत चौधरी समेत कई लोग मौजूद रहे।
आंदोलन तेज किया जाएगा
प्रदर्शन के दौरान वाटेरा सरपंच सविता देवी ने कहा कि जनता एकजुट है इस परियोजना को हर हाल में रद्द करवाया जाएगा। सरकार को क्षेत्र के भविष्य से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं देंगे। जनप्रतिनिधियों ने कहा कि परियोजना को निरस्त नहीं करने पर आंदोलन तेज किया जाएगा।
दबाव में काम करने का आरोप
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि राजनेताओं के दबाव में कार्य किया जा रहा है, जिससे आदिवासी जीवन संकट में है। परियोजना के लिए आयोजित जनसुनवाई भी महज औपचारिकता के लिए लगाई गई थी। ग्रामीणों की ओर से लिखित में प्रस्तुत की गई आपत्तियों को भी गंभीरता से नहीं लिया गया।
पहाड़ खत्म होंगे तो आदिवासी उजडेंग़े
ग्रामीणों ने बताया कि पिण्डवाड़ा तहसील में प्रस्तावित चूना पत्थर खनन परियोजना का लगातार विरोध किया जा रहा है। चेतावनी दी है कि किसी भी हाल में पिण्डवाड़ा की ऐतिहासिक पहाडिय़ों को खनन की भेंट नहीं चढऩे देंगे ग्रामीणों का कहना हैं कि इस परियोजना से क्षेत्र की पर्यावरणीय और सामाजिक, आर्थिक व भौतिक संरचना को गंभीर खतरा है। पहाड़ खत्म हो जाएंगे तो खेती-बाड़ी चौपट हो जाएगी और आदिवासी समाज उजड़ जाएगा।
गोपनीय करना चाह रहे थे जनसुनवाई
उल्लेखनीय है कि गत 19 सितम्बर को भीमाना पंचायत भवन में आयोजित पर्यावरणीय जनसुनवाई के दौरान भी ग्रामीणों ने विरोध जताया था। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि जनसुनवाई की सूचना छिपाई गई और छोटे कक्ष में आयोजन किया गया। भारी विरोध के बाद प्रशासन को बैठक के लिए बाहर टेबल-कुर्सियों लगानी पड़ी।
ग्रामीणों ने उस दौरान सौ से ज्यादा लिखित आपत्तियां दर्ज कराते हुए परियोजना को जनविरोधी बताया था।



