- दीपावली के बावजूद नगर परिषद ने नहीं की सडक़ों की मरम्मत
- छलनी हुई पड़ी सडक़ें और ऊपर किया सजावट का ताना-बाना
सिरोही. ऊपर ठाठ-बाट से शृंगार करने और नीचे साधारण सा रहने पर ठेठ मारवाड़ी में आपने कहते सुना होगा कि ऊपर वागा और नीचे नागा। यह कहावत आप सिरोही में देख भी सकते है। शहर की अधिकतर सडक़ें छलनी हुई पड़ी है और सजावट के लिए तोरणद्वार लगाए जा रहे हैं। दीपावली को लेकर नगर परिषद ने सजावट की तैयारी कर दी है, लेकिन सडक़ों की मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं दिया। सजावट देखने के चक्कर में लोग न केवल गड्ढों से ठोकरें खाएंगे वरन् हादसों का शिकार भी होंगे। सजावट पर लाखों रुपए खर्च करने वाले अधिकारी सडक़ों की मरम्मत पर कब ध्यान देंगे, कहना मुश्किल है। उधर, गड्ढों के बीच तोरणद्वार लगाए जाने को लेकर शहरवासियों में भी रोष व्याप्त है। लोगों का कहना है कि गड्ढों के बीच सजावट और रोशनी सज्जा का कोई मतलब नहीं है। पहले सडक़ों की मरम्मत करानी चाहिए थी।
गड्ढों में गुम हो जाएगी रोशनी
नगर परिषद की ओर से शहर में तोरणद्वार लगाए जा रहे हैं। रोशनी के लिए लडिय़ां भी लगाई जाएगी, लेकिन यह रोशनी नीचे आकर गड्ढों में गुम हो जाएगी। उड़ती धूल व गड्ढों के कारण लोगों के लिए चलना तक दूभर हो गया। ऐसे में दीपावली की खुशियां कहीं बेमजा न हो जाए तो गनीमत है।
सडक़ मरम्मत पर ध्यान ही नहीं
आमतौर पर बारिश के बाद और दीपावली से पहले सडक़ों की एक बार मरम्मत जरूर की जाती है, लेकिन नगर परिषद को शायद इसकी कोई परवाह नहीं है। यही कारण है कि दीपावली सिर पर होने के बावजूद सडक़ों की मरम्मत नहीं करवाई जा रही। हां, दीपावली की सजावट के लिए तोरणद्वार जरूर लगा दिए।

टूटे गमलों को भी रंग से पोत दिया
इसे नगर परिषद की कारस्तानी ही कहा जाएगा कि सजावट के नाम पर बजट व्यय करने को आमादा है। शहर में फुटपाथ पर लगे गमलों को भी रंग-रोगन किया जा रहा है। मानते है कि इससे सौंदर्यन बढ़ेगा, लेकिन क्या टूटे-फूटे गमलों को भी रंग-रोगन करना उचित है। इन टूटे गमलों को बदलने के बजाय रंग पोता गया है।



