साहूकारी के नाम पर सूदखोरों के जाल में फंस रहे जरूरतमंद
- अनधिकृत रूप से चल रहा ब्याजखोरी का जाल
- शहर तो शहर, गावों में में सक्रिय हो रहे सूदखोर
सिरोही. इन दिनों सिरोही समेत जिलेभर में सैकड़ों लोग सूदखोरी के जाल में फंसे हुए हैं। साहूकारी के नाम पर ये लोग उधारी ले तो लेते हैं, लेकिन सूदखोरों के कर्ज तले दबे रह जाते हैं। कर्ज की रकम पर पांच से दस फीसदी ब्याज अदा करने में कभी कोई चूक हो जाए तो प्रताडऩा भी शुरू। गाली-गलौज, मारपीट की धमकियां और मां-बहन की गालियां तक सुननी पड़ जाती है। साथ ही चल-अचल सम्पत्ति सूदखोर के फेवर में लिखकर देने का दबाव शुरू हो जाता है। यदि लगातार दो-तीन महीने तक ब्याज की रकम नहीं दे पाए तो ये कथित साहूकार कर्जदार का जीना मुश्किल कर देते हैं। मजबूरी में लोग अक्सर इनके चगुल में फंस जाते हैं। यह स्थिति एक कस्बे या शहर की नहीं बल्कि समूचे जिले की है। सिरोही शहर में हालत बहुत ही विकट है। कई छोटे-मोटे व्यापारी और बेरोजगार युवक ऐसे सूदखोरों के चंगुल में फंसे हुए हैं। इनकी सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वे फरियाद भी करें तो किससे करें। अपना दुखड़ा सुनाए तो आखिर सुनाए किसे। शहर में अनधिकृत रूप से पांच से दस टका के ब्याज पर कर्ज देने वाले साहूकारों व सूदखोरों की भरमार सी हो गई है।#the needy are trapped in the trap of moneylenders
बिना लाइसेंस ही काट रहे चांदी
यहां यह भी बता दें कि सूदखोरी या साहूकारी का धंधा चलाने वाले यह धंधा गुपचुप ही करते हैं। या तो कर्जा लेने वाला जानता है या फिर देने वाला। सच तो यह है कि अधिकतर साहूकारों के पास साहूकारी का लाइसेन्स ही नहीं होता। वे यूं ही धुप्पल में गाड़ी चलाकर चांदी काट रहे हैं। इनके चंगुल में फंसने वाले अधिकतर लोगों की हालत खराब ही रहती है। कइयों को तो रातों रात दुकान आदि खाली कर नौ-दो ग्यारह होने को मजबूर हो जाना पड़ता है।
रैकेट तोड़ा था पर वापस पैर जमाने लगे
बताया जा रहा है कि शहर में इस तरह की स्थिति लम्बे समय से चल रही है। जानकार लोग बताते हैं कि काफी अर्से पूर्व पुलिस ने इस तरह का एक ऑपरेशन चलाते हुए सूदखोरों का रैकेट जरूर तोड़ा था। बताया जा रहा है कि उस समय कुछ सूदखोर तो भूमिगत हो गए थे। बाद में एक-एक कर वापस बाहर आ गए। पिछले कुछ अर्से से बड़ी संख्या में सूदखोर वापस काम करने लगे हैं। इनके जाल में फंसे लोगों की भी संख्या बड़ी ज्यादा है।
बीस-बीस टका ब्याज वसूलने में नहीं झिझक
बताया जा रहा है कि कई सूदखोर तो कर्जदार की मजबूरी का फायदा उठाकर बीस-बीस टका ब्याज वसूलने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं करते। जिसके पास रहन रखने के लिए और कोई खास वस्तु नहीं हो उनसे अपनी ओर से तय नियम-कायदे और शर्ते स्टाम्प पेपर या सादे कागज पर सम्पत्ति तक लिखवा कर ले लेते हैं। कई बार तो उनके बैंक की पासबुक और एटीएम तक अपने पास रख लेते हैं। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि कई बार तो कर्ज की रकम डेढ़-दो साल में ही डबल कर दी जाती है।
कर्जदार के साथ ऐसा बर्ताव कि रोंगटे खड़े हो जाए
साहूकार से कर्जा लेने और फिर समय पर नहीं चुकाने की स्थिति में जो हालत होती है, वह कई बार तो रोंगटे खड़े कर देने वाली होती है। साहूकार की प्रताडऩा झेलने वाला कई बार तो आत्मघाती कदम उठाने को बेबस हो जाता है। कोई घर छोड़कर गायब हो जता है तो कोई आत्महत्या ही कर लेता है। इसके बाद भी सूदखोरों का जाल नहीं टूटता। गायब हो गए व्यक्ति तक पहुंचने के लिए ये लोग कड़ी दर कड़ी जोड़ते हैं। कर्जदार गायब होने का आत्महत्या कर लेने की स्थिति में ये लोग कर्ज दिलाने वाले मध्यस्थ के मत्थे ही पूरी राशि डाल देते हैं। इसके बाद इनका खेल वापस शुरू हो जाता है।
कुछ दिन चर्चा होती है फिर मामला ठंडा
विड़म्बना तो इस बात की है कि इस तरह के मामलों में पुलिस भी ज्यादा कार्रवाई नहीं कर रही है। आत्महत्या या व्यक्ति व्यक्ति के गायब होने जैसा मामला सामने आए तो भी कुछ दिनों में मामला ठंडा पड़ जाता है। बड़ी हद सूदखोर के ब्याज, प्रताडऩा या लाइसेंस जैसी बातों पर चर्चा के बाद लोग भी भूल जाते हैं। कभी आत्महत्या करने वाले का कोई सुसाइड नोट मिल जाए तो जरूर कुछ दिन तक पुलिस सक्रिय रहती है, लेकिन बाद में नतीजा वही ढाक के तीन पात वाला ही रहता है।