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वाहन पार्किंग के नाम पर लूट, मानों मरीजों से झगडऩे की छूट

  • जिला अस्पताल में पार्किंग के बहाने जेब पर सेंध
  • पार्किंग का पैसा न देने पर कार्मिक झगड़े पर आमादा
  • मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल आ रहे मरीजों की बढ़ी मुश्किल
    @ मनोजसिंह
    सिरोही.
    बेशक सिरोही के जनरल अस्पताल आने वाले मरीजों और उनके परिजनों के लिए लम्बे अर्से से पार्किंग की सुविधा की सख्त जरूरत महसूस की जा रही थी और खुशी की बात यह है कि अस्पताल प्रशासन ने यह व्यवस्था कर भी दी। पर, अस्पताल प्रशासन व इससे जुड़ी मेडिकल रिलीफ सोसायटी ने पार्किंग में वाहनों का शुल्क वसूलने के लिए जो नियम बनाए हैं वे लोगों पर भारी पड़ रहे हैं। यहां पार्क की जाने वाली बाइक का शुल्क दस रुपए और कार का शुल्क बीस रुपए वसूला जा रहा है। गरीब तबके के मरीजों व उनके परिजनों के लिए यह शुल्क भी भारी पड़ रहा है। मुफ्त इलाज के लिए जिला अस्पताल आने वाले मरीजों की जेब से पार्किंग के नाम पर पैसा झटका जा रहा है। नहीं देने पर ठेकेदार के कार्मिक झगड़ा व मारपीट करने से भी गुरेज नहीं करते।

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फिर निशुल्क योजनाओं का क्या लाभ
पार्किंग के नाम पर लिया जा रहा यह शुल्क केवल बारह घंटे की अवधि के लिए है। इस दौरान महज दो-पांच मिनट में ही वापस जाने वाले लोगों को भी शुल्क अदा करना पड़ रहा है। वार्ड में भर्ती मरीज के परिजन को यदि फल या कुछ आवश्यक चीज खरीदने के लिए बाहर जाना पड़े तो आते ही वापस शुल्क अदा करना पड़ता है। मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना व निशुल्क जांच योजना के बावजूद मरीजों को यहां आकर जेब खाली करनी पड़ रही है।

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मरीजों व परिजनों को आ रही यह दिक्कत
असल में बारह घंटे की अवधि का शुल्क वसूलने से मरीजों व उनके साथ आने वाले परिजनों को भारी दिक्कत आ रही है। इसे यूं समझने की जरूरत है कि यदि कोई मरीज डॉक्टर को दिखाने आता है और दिखाने के बाद वह पर्ची पर लिखी दवाइयां अस्पताल से लेकर रवाना हो जाता है तो इस पूरी प्रक्रिया में अधिकतम घंटे-दो घंटे का ही समय लगता है। ऐसी स्थिति में भी उसे पूरे बारह घंटे का शुल्क अदा करें। कई बार मरीज को चिकित्सकीय जांच के बाद भर्ती कर दिया जाता है तो उसे लेकर आने वाले परिजन को अपना वाहन पार्किंग में पार्क करना जरूरी हो जाता है। जब कोई परिजन भर्ती मरीज के लिए फल या अन्य सामग्री खरीदने बाजार जाना होता है और आधे घंटे या घंटेभर बाद लौटने पर फिर व्हीकल पार्क करने जाएगा तो दोबारा रसीद कटवानी पड़ती है। उधर, मरीज कोई बारह घंटे तक ही तो भर्ती नहीं रहता। ऐसी सूरत में भी मरीज या उसके परिजन को बारह घंटे बाद फिर से रसीद कटवानी पड़ती है, जो उसके लिए काफी महंगा सौदा साबित हो जाता है।

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वास्तव में तो होना यह चाहिए
अस्पताल प्रबंधन को अव्वल तो शुल्क वसूलना ही नहीं चाहिए। फिर भी शुल्क वसूलने का मानस बना ही लिया है तो तीन-चार स्लैब्स बनाने चाहिए, ताकि लोगों को ज्यादा दिक्कत हो। मसलन एक स्लैब तीन से चार घंटे का होना चाहिए, जिसमें मरीज या उसके साथ आने वाला परिजन तीन-चार घंटे की अवधि में ही वाहन लेकर चला जाए तो उसे कम शुल्क चुकाना पड़ा। इस शुल्क को कम कर पांच रुपए का किया जा सकता है। दूसरा स्लैब बारह घंटे का है उसे बढ़ाकर चौबीस घंटे का कर देना चाहिए। उसके लिए मौजूदा शुल्क को बरकरार रखा जा सकता है। फिर तीन दिन का स्लैब बनाना चाहिए, ताकि उसका शुल्क थोड़ा बढ़ाया जा सके। सप्ताह का स्लैब भी बनाया जा सकता है।

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पार्किंग मामले में राहतजनक कार्रवाई की उम्मीद
पार्किंग का पैसा देने मुश्किल होने से कई लोग इधर-उधर वाहन खड़ा कर जाते हैं। एक ही दिन में बार-बार पैसे मांगे जाने पर वाहन चालक शुल्क देने से मना कर देता है। ऐसे में ठेकेदार के कार्मिक झगड़े पर उतारू हो जाते हैं। इन सबसे बचने के लिए लोग अक्सर अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर ही वाहन खड़े कर जाते हैं। इससे शहर की पार्किंग व्यवस्था भी बिगड़ रही है। बाहर ऑटो स्टैंड की बाइक व कारों का जमावड़ा बना रहता है। उम्मीद की जा रही है कि अस्पताल प्रशासन इस मामले को गम्भीरता से लेते हुए कोई ठोस कार्रवाई करेगा, ताकि व्हीकल लेकर अस्पताल आने वाले मरीजों व उनके परिजनों को राहत मिल सके।#Looting in the name of vehicle parking in Sirohi District Hospital, as if there is a freedom to quarrel with patients

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