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इंतजार की घडिय़ों के बीच कहीं उलटफेर का संकेत तो नहीं

  • पड़ोसी जिलों में कोई महिला नहीं तो क्या यहां मिलेगा दायित्व
  • जालोर में बदलाव इसलिए सिरोही में भी परिवर्तन का अंदेशा

सिरोही. भाजपा में संगठन पर्व चल रहा है और सिरोही के लिए अब भी इंतजार की घडिय़ां समाप्त नहीं हुई। यह कहीं उलटफेर का संकेत तो नहीं है। आमतौर पर जिलाध्यक्ष पद के लिए सामाजिक समीकरण भी देखे जाते हैं, लेकिन इस बार बदलाव किया गया है। माना जा रहा है कि इस बार सिरोही में किसी महिला चेहरे को आगे लाया जा सकता है। इस बात को इसलिए भी बल मिलता है कि पड़ोसी जिलों में अभी तक एक भी महिला को प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। लिहाजा सिरोही जिले में इस बार उलटफेर होने का पूरा अंदेशा है।

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इस तरह हो सकता है बदलाव
वैसे पिछले कुछ सालों से सिरोही में विप्र व वैश्य समाज से आने वाले प्रतिनिधि ही जिलाध्यक्ष पद पर रहे हैं। ऐसे में इस बार विप्र व वैश्य समाज को ही प्रतिनिधित्व मिलता है तो महिला चेहरे पर भी दांव खेला जा सकता है। यह भी हो सकता है कि इस बार जिलाध्यक्ष का पद विप्र या वैश्य के अलावा अन्य किसी वर्ग की झोली में चला जाए।

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बदल सकते हैं जातिगत समीकरण
संसदीय क्षेत्र के जालोर जिले में पूर्ववर्ती कुछ सालों में जहां राजपूत वर्ग से जिलाध्यक्ष घोषित हुए थे, वहीं इस बार घोषित जिलाध्यक्ष विप्र समाज से आते हैं। सिरोही में पिछले कुछ टर्म से विप्र व वैश्य समाज से आने वाले कार्यकर्ताओं को जिलाध्यक्ष बनाया जा चुका है। ऐसे में इस बार समीकरण में बदलाव होने पर अन्य वर्ग को भी प्रतिनिधित्व मिल सकता है।

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शीर्ष पर दावेदारी में वैश्य समाज से दो नेत्रियां
सिरोही में दावेदारी के लिहाज से राजपूत समाज और वैश्य समाज से कई चेहरे सामने आ रहे हैं। महिलाओं के नाम पर यदि सहमति बनती है तो भी शीर्ष पर जो दो नाम बताए जा रहे हंै, वे भी वैश्य समाज ही आती हैं। संसदीय क्षेत्र के जालोर में पिछले कुछ टर्म से जहां राजपूत समाज से तो सिरोही में वैश्य या विप्र समाज से आने वाले कार्यकर्ता को यह दायित्व मिलता रहा है।

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जिसकी चलेगी वही ले जाएगा जिलाध्यक्ष का पद
बताया जा रहा है कि आपसी कलह या गुटबाजी के कारण अभी जिलाध्यक्ष का नाम तय नहीं हो पा रहा है। कार्यकर्ता अंदरखाने अलग-अलग धुरियों में बंटे हुए हैं। जिलाध्यक्ष पद की कमान हर कोई अपने हाथ में रखने का इच्छुक है। ऐसे में बड़े नेता अपने-अपने चहेतों को यह पद दिलाने की जुगाड़ में लगे हुए हैं। अब जिसकी चलेगी वहीं अपने चहेते को जिलाध्यक्ष बना पाएगा। देखना यही है कि बड़े स्तर पर किस नेता को कितनी ज्यादा तवज्जो मिलती है।
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