… तो क्या तीन वर्षों से टोल रोड का निरीक्षण ही नहीं किया, आखिर जिम्मेदार खामोश क्यों है

- तीन साल पहले कार्यरत अधिकारियों के लिख रहे हैं नम्बर, एक अधिकारी तो सेवानिवृत्त तक हो गए
- जिन अधिकारियों पर नियमित रूप से निरीक्षण करने का दायित्व उनके ही नम्बर नहीं तो गलती किसी
सिरोही. सिरोही से मंडार तक करीब 70 किमी के दायरे में यह बीओटी सड़क है। इस पर तीन जगह टोल बूथ बना रखे हैं, जहां वाहन चालकों से टोल वसूला जा रहा है। इसके बावजूद समुचित सुविधा नहीं मिल रही। यह सब सार्वजनिक निर्माण विभाग की शह पर चल रहा है। ऐसा नहीं होता तो इस मार्ग पर व्यवस्थाएं बहाल करने से लेकर नियमित निरीक्षण तक जरूर किया जाता। चौंकना लाजिमी पर हकीकत यही है। जिन अधिकारियों पर इस रोड का नियमित रूप से निरीक्षण करने का दायित्व है उनके ही नम्बर लिखे हुए नहीं है तो आखिर गलती किसकी है। टोल कंपनी की इस बेपरवाही को लेकर सार्वजनिक निर्माण विभाग आखिर मूकदर्शक क्यों बना हुआ है। ये सवाल हर किसी के मन में उठ रहे हैं।
इस बीओटी मार्ग के टोल बूथों पर ही जिन अधिकारियों के सम्पर्क नम्बर लिख रहे हैं, वे तीन साल पहले के हैं। इनमें से एक नम्बर अधीक्षण अभियंता का हैं, जो सेवानिवृत्त तक हो गए। दूसरा नम्बर जिन अधिशासी अभियंता का है, वे भी अब यहां नहीं है। उनके बाद यहां तीसरे या शायद चौथे अधिशासी अभियंता आ चुके हैं, लेकिन सूचना बोर्ड आज तक जस का तस है।
किसी शिकायत के बारे में कोई बात भी करना चाहे तो जिन अधिकारियों के नम्बर हैं उनसे सम्पर्क करने भी समस्या का हल नहीं हो सकेगा। ऐसे में मन मसोस कर जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। टोल बोर्ड के समीप लगे ये नम्बर ही दर्शाते हैं कि न तो टोल रोड का निरीक्षण किया जा रहा है और न इस कंपनी की बेपरवाही पर कोई कार्रवाई हो रही है। सड़क जगह-जगह लगाए सम्पर्क नम्बर के बोर्ड इस बात के गवाह है। इन बोर्ड पर जिन अधिकारियों के नम्बर हैं, वे तीन वर्ष पहले कार्यरत थे। इनमें से एक अधिकारी तो सेवानिवृत्त तक हो चुके हैं। लगता है तीन वर्षों में किसी अधिकारी ने इस सड़क का जायजा तक नहीं लिया। चाहे जो हो, लेकिन टोल चुकाने के बावजूद यदि लोगों को सुविधाएं न मिले और हादसों में जान गंवानी पड़े तो इसमें जिम्मेदारों की बेपरवाही ही नजर आती है। वैसे अधिकारी चाहे जो कहते रहे, लेकिन ऐन टोल बूथ के पास लगे ये बोर्ड ही बताते हैं कि इस रोड का नियमित निरीक्षण तक नहीं किया जा रहा।
मौन स्वीकृति में सब चल रहा
वाहन चालक अक्सर सड़क मरम्मत की मांग भी उठाते हैं, लेकिन निर्माण विभाग की मौन स्वीकृति में सब कुछ आराम से चल रहा है। यही कारण है कि बीओटी कंपनी समय पर मरम्मत नहीं करवाए तब भी कोई कहने वाला नहीं है। माना कि विभागीय अधिकारी शह नहीं दे रहे तो आखिर मरम्मत करवाने पर उनका ध्यान क्यों नहीं जा रहा। निर्माण विभाग के अधिकारियों की माने तो टोल रोड पर सारी सुविधाएं चाक-चौबंद है, लेकिन हकीकतन ऐसा नहीं है। सड़क पर देखा जाए तो डामर कई जगहों पर स्थान छोड़ चुका है। किनारे-किनारे डामर का लम्बा भराव होने से साइड लेते समय वाहन फिसल जाते हैं। नहीं भी फिसले पर वाहन असंतुलित तो जरूर होता है। ऐसे में आगे-पीछे चल रहे वाहन की चपेट में आने या टक्कर होने की स्थिति हर समय बनी रहती है। संभवतया अधिकारियों की नजरंदाजी के कारण ही टोल कंपनी भी बेपरवाही बरत रही है।
सड़क ही मरम्मत मांग रही तो गड्ढे पाटने से क्या होगा
सार्वजनिक निर्माण विभाग की अनदेखी के कारण टोल कंपनी संचालक भी सुविधाएं दुरुस्त करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे। टोल कंपनी की ओर से सुविधाएं तो दूर गड्ढों की मरम्मत तक नहीं की जा रही। कुछ जगहों पर औपचारिक रूप से मरम्मत जरूर कर रहे हैं, लेकिन यह नाकाफी साबित हो रहा है। यह इसलिए कि जहां पूरी सड़क ही मरम्मत मांग रही हो, वहां केवल गड्ढे पाटने से क्या हासिल हो सकता है। बगैर मरम्मत के यह पूरी टोल रोड दिनों दिन खराब होती जा रही है। माना जा रहा है कि औपचारिक मरम्मत इनकी मजबूरी है। इसलिए कि विभागीय बैठकों में अपना पक्ष रख सके। सरकारी बैठकों में सड़क मरम्मत का मुद्दा उठने पर आंकड़े पेश किए जाने को यह ठीक है, लेकिन टोल रोड की स्थिति बेहद खस्ता है। सड़क मरम्मत पर पूरी तरह ध्यान दिया जाता तो गड्ढे पाटने वाली जगहों के पास ही गडढे अधूरे क्यों छोड़े जा रहे हैं। इसी तरह कई जगह सड़क के उभार भी मुश्किल बढ़ा रहे हैं। ऐन मोड़ में डामर के उभार हादसे का सबब बन रहे हैं। इन उभारों के पास गड्ढों की मरम्मत तक कर दी गई, लेकिन उभार ठीक करने पर ध्यान नहीं दिया। फर्राटे से चलते वाहन उभार के कारण हादसे का शिकार हो रहे हैं।